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प्रदेश बागड़ा ब्राह्मण अधिकारी-कर्मचारी

यह हर्ष का विषय है कि प्रदेश बागड़ा ब्राह्मण अधिकारी-कर्मचारी कल्याण समिति, जयपुर, एक स्मारिका का प्रकाशन कर रही है।

अधिकारियों एवं कर्मचारियों के काम-काज को लेकर कई प्रकार के आदेश व निर्देश समय-समय पर निकाले जाते हैं। प्रत्येक कर्मचारी को काम-काज की गुणवत्ता बढ़ाने की दृष्टि से इन सब आदेशों की जानकारी आवश्यक है।

आशा है, उक्त स्मारिका के प्रकाशन में यह जानकारी दी जाएगी जिससे सभी कर्मचारी व अधिकारी लाभान्वित होंगे।

प्रदेश बागड़ा ब्राह्मण अधिकारी-कर्मचारी कल्याण समिति, जयपुर, एक स्मारिका का प्रकाशन कर रही है।

साथियो समाज सेवा के लिये चल रही कुटनीति, कोर्टनीति, कपटनीति, राजनीति, वाट्सअप पर शाब्दीक युद्धको देखते हुए राजकुमार प्रधान समाज के आमजन को समाज सेवा का अनुभव वलेने का आग्रह करते हुए दावा करते है कि बागड़ा समाज की सेवा से व्यक्ति जितना जल्दी सिख सकता है उतना तो सात जन्मो की अन्य प्रकार की सेवा से भी नहीं। बागड़ा समाज की सेवा में जीवन से मजबूर व्यक्ति यहां मजबूत होकर निकलता है। यहां आपस में मचे घमासान, शाब्दीक बाण अभ्रद व्यवहार, वाट्सअप युद्ध, टांग खिचने की प्रवृत्ति, बिना मांगे सलाह मशवीरा, चंदा एकत्रित करने में छूटते पसिने, टालमटोल व्यवहार, से समाज सेवक तपते, पकते तथा रचते बसते हैं। इस नश्वर सांसारिक जीवन से दूखी होकर डिप्रेशन में जाना, चुप्पी साध लेना तनाव में रहना, अपनो की कटीजली सुनना तथा अकेलेपन को दूर करने के लिये बागड़ा समाज की सेवा से अच्छा इस नोटबंदी के युग में कुछ भी नहीं हो सकता है।

साथियो समाज सेवा के समय जब अपने ही संगी साथियो द्वारा हमारे अंहकार पर टंकार किया जाता है, हमारे मान सम्मान की फैशनेबल हजामत की जाती है। हमारे हर कार्य का पोस्टमार्टम किया जाता है। घर घर दस्तक देते हुए दस्ते लग जाती है। चंदा एकत्रित करने पर दिन में चांद तारे नजर आने लगते है। डांडिया रास प्रारंभ होने के पहले ही मैदान में समाज के धुरन्दर खिलाडी किकेट के बल्ले से आयोजको की रासलीला पर चौके छक्के जड़ने लगते है। चुनावो में चुन चुन कर समजा सेवको को कोर्ट कचहरी के चक्कर लगवाये जाते है। साथियो बागड़ा समाज की सेवा से व्यक्ति का जीवन केसर चंदन की तरह घीस घीस कर सुगंधीत हो जाता है। समाज सेवक अकेले ही एक्ट करता है बाकि सब रिएक्ट करते है। उस बेचारे के प्रत्येक कदम पर उसकी हर किया पर प्रतिक्रिया होती है। हम समाज सेवा के समय कम बोलना धीरे बोलना तथा मीठा बोलना सीख जाते है। घर की कैद में हम किसी से कुछ बोलने की स्थिती में तो रहते नहीं है वहां कोई हमारी सुनने को तैयार नहीं होता है। और समाज सेवा में सबकी सुनने के अलावा हमारे पास कोई काम रहता नहीं है।

युवाओ को समाज सेवा का आग्रह 

युवाओ से आग्रह है कि अपने वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिये, अपनी कार्यस्थल पर सिक्का जमाने के लिये, अपने बच्चो के मध्य सामाजिक जीवन के ख‌ट्टे मिठे अनुभव बांटते हुए उन्हें जीवन यात्रा 1 में आगे बढाने के लिये आज ज से ही समाज सेवा में पुरी तरह तल्लीन हो जावें। अभी तक हम सांसारिक जीवन में अपने आस पास 100 लोगो की भीड़ में 99 लोगो की कमियो को देखकर सुख अनुभव करते थे। समाज सेवा में उल्टा है यहा 99 लोगो द्वारा हमारी और सिर्फ हमारी कमियां बतलाकर आनंद का अनुभव किया जाता है।

नारीशक्ति को समाज सेवा से जुड़ना आवश्यक

साथियो हमे अपने सासांरिक जीवन को चलाने के लिये पैसा टका चाहिये तो महालक्ष्मी, शक्ति चाहिये तो मॉ दूर्गा, ज्ञान चाहिये तो माँ सरस्वती, तन को निर्मल करना हो तो माँ गंगा मैया कर्मशील बनना हो गीता मैया, दुध पीना तो गाय माता, दुख तकलीफ में रहे तो मां का आंचल, घर परिवार में बात मनवानी हो तो बहन का साथ तथा जिन्दगी चैन से गुजारनी हो तो तो तो..? गृहलक्ष्मी की आवश्यकता होती है। तो फिर हम समाज सेवा में नारी शक्ति को अलग थलग क्यो करते है। राजकुमार प्रधान का विशेष आग्रह है कि लक्ष्मी की पुजा अवश्य करो किन्तु उस पर भरोसा मत करना क्योकि कब राजा महाराजा नोटबंदी कर लक्ष्मी को आपकी तिजोरी से निकालकर बैंको की तिजोरी में कैद कर देवें। और आपसे निवेदन है कि गृहलक्ष्मी की पुजा आप लोग करे ना करे कोई बात नहीं किन्तु उस पर भरोसा अवश्य करो इसलिये समाज की नारी शक्ति से आग्रह है कि अपनी वास्तविक शक्ति को पहचान कर समाज सेवा के इस पावन कार्य में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेकर समाज को उन्नती की राह पर ले जावें।

वृद्धजनो के लिये समाज सेवा आवश्यक

समाज के पारिवारीक / कार्यालयीन सेवाओ से फुर्सत पा चुके वृद्धजनो से राजकुमार प्रधान का विशेष आग्रह है कि प्यारे पितामहो चिता जलने के पहले इस समाज में दूसरो की चेतना तथा अस्थिया गलने से पहले समाज के प्रति आम लोगो की आस्था जरूर जगा जाओ। घर पर खरी खोटी सुनकर घर बार छोडकर चोला उतारने से अच्छा है समाज सेवा का चयन करे। बिना कुछ करे बिस्तर पर लेटे लेटे इंतजार करने बजाय आने वाली पीढ़ीयों के लिये समाज में कुछ ऐसा कर जाये की उनके दिलो में सैकडो वर्षों तक जिन्दा रहे। संसार छोड़ने के बाद घर के किसी कोने में तस्वीर बनकर लटकने तथा 16 श्राद्धपक्ष में पुजनीय होने से अच्छा है कि समाज विकास के लिये कुछ ऐसा कर जाय कि समाज के चौराहे पर स्टेच्यू बनकर हर समय समाज के लिये पुजनीय बने रहे। हम एक बात अच्छी तरह गांठ बांध लेवे कि हमारे बिना ये परिवार, घर, संसार समाज का काम सुचारू से हजारो वर्षों से चल रहा है किन्तु इनके बिना हमारा काम इस संसार में एक पल भी नहीं चल सकता है।

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